অযোগ্য হঞা তাহা কেহ সদা পান করে
যোগ্য জন নাহি পায, লোভে মাত্র মরে
अयोग्य ह ञा ताहा केह सदा पान करे ।
योग्य जन नाहि पाय, लोभे मात्र मरे ॥137॥
अनुवाद
"कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो उस अमृत को पीने के योग्य नहीं होते, फिर भी वे उसे लगातार पीते रहते हैं, जबकि कई ऐसे उपयुक्त लोग होते हैं जिन्हें यह कभी मिल नहीं पाता और अंततः तृष्णा में मृत्यु को पाते हैं।"