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श्लोक 3.16.136  |
যোগ্য হঞা কেহ করিতে না পায পান
তথাপি সে নির্লজ্জ, বৃথা ধরে প্রাণ |
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योग्य हञा केह करिते ना पाय पान ।
तथापि से निर्लज, वृथा धरे प्राण ॥136॥ |
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अनुवाद |
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जब कोई इस अमृत को पीने में सक्षम होता है फिर भी नहीं पीता, तो वह लज्जित व्यक्ति अपना जीवन व्यर्थ में ही बिताता है। |
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