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अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान
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श्लोक 135
श्लोक
3.16.135
পরম দুর্লভ এই কৃষ্ণাধরামৃত
তাহা যেই পায, তার সফল জীবিত
परम दुर्लभ एई कृष्णाधरामृत ।
ताहा येइ पाय, तार सफल जीवित ॥135॥
अनुवाद
श्री चैतन्य महाप्रभु ने कहा, "कृष्ण के होठों का यह अमृत मिलना अति कठिन है, परंतु इस अमृत की कुछ बूँदें भी मिल जाएँ तो जीवन सफल हो जाता है।"
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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