वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्री चैतन्य चरितामृत
»
लीला 3: अन्त्य लीला
»
अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान
»
श्लोक 135
श्लोक
3.16.135
পরম দুর্লভ এই কৃষ্ণাধরামৃত
তাহা যেই পায, তার সফল জীবিত
परम दुर्लभ एई कृष्णाधरामृत ।
ताहा येइ पाय, तार सफल जीवित ॥135॥
अनुवाद
play_arrowpause
श्री चैतन्य महाप्रभु ने कहा, "कृष्ण के होठों का यह अमृत मिलना अति कठिन है, परंतु इस अमृत की कुछ बूँदें भी मिल जाएँ तो जीवन सफल हो जाता है।"
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.