ए - सब - तोमार कुटिनाटि, छाड़ एइ परिपाटी
वेणु - द्वारे काँहे हर’ प्राण ।
आपनार हासि ला गि’, नह नारीर वध - भागी
देह’ निजाधरामृत - दान” ॥133॥
अनुवाद
इसलिए हे कृष्ण, आपने जितनी चालें इतनी दक्षता से चला रखी हैं, उन सबों को त्याग दो। अपनी वंशी की ध्वनि से गोपियों के प्राण लेने का प्रयास मत करो। अपनी हँसी तथा उपहास से आप स्त्रियों का वध करने के उत्तरदायी बन रहे हो। आपके लिए अच्छा होगा कि हमें अपने होठों के अमृत का दान देकर हमें तृप्त करो।