श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान  »  श्लोक 133
 
 
श्लोक  3.16.133 
এ-সব — তোমার কুটিনাটি, ছাড এই পরিপাটী,
বেণু-দ্বারে কাঙ্হে হর’ প্রাণ
আপনার হাসি লাগি’, নহ নারীর বধ-ভাগী,
দেহ’ নিজাধরামৃত-দান”
 
 
ए - सब - तोमार कुटिनाटि, छाड़ एइ परिपाटी
वेणु - द्वारे काँहे हर’ प्राण ।
आपनार हासि ला गि’, नह नारीर वध - भागी
देह’ निजाधरामृत - दान” ॥133॥
 
अनुवाद
 
  इसलिए हे कृष्ण, आपने जितनी चालें इतनी दक्षता से चला रखी हैं, उन सबों को त्याग दो। अपनी वंशी की ध्वनि से गोपियों के प्राण लेने का प्रयास मत करो। अपनी हँसी तथा उपहास से आप स्त्रियों का वध करने के उत्तरदायी बन रहे हो। आपके लिए अच्छा होगा कि हमें अपने होठों के अमृत का दान देकर हमें तृप्त करो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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