কৃষ্ণ যে খায তাম্বূল, কহে তার নাহি মূল,
তাহে আর দম্ভ-পরিপাটী
তার যেবা উদ্গার, তারে কয ‘অমৃত-সার’,
গোপীর মুখ করে ‘আলবাটী’
कृष्ण ये खाय ताम्बूल, कहे तार नाहि मूल
ताहे आर दम्भ - परिपाटी ।
तार येबा उद्गार, तारे कय ‘अमृत - सार’
गोपीर मुख करे ‘आलबाटी’ ॥132॥
अनुवाद
"कृष्ण के चबाए हुए पान की कीमत नहीं और उनके मुँह से ऐसे चबाए गए पान का बचा हुआ हिस्सा अमृत का सार माना जाता है। जब गोपियाँ इसे स्वीकार करती हैं, तो उनके मुँह कृष्ण के थूकदान बन जाते हैं।"