श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान  »  श्लोक 131
 
 
श्लोक  3.16.131 
সে ফেলার এক লব, না পায দেবতা সব,
এ দম্ভে কেবা পাতিযায?
বহু-জন্ম পুণ্য করে, তবে ‘সুকৃতি’ নাম ধরে,
সে ‘সুকৃতে’ তার লব পায
 
 
से फेलार एक लव, ना पाय देवता सब
ए दम्भे केला पातियाय ? ।
बहु - जन्म पुण्य करे, तबे ‘सुकृति’ नाम धरे
से ‘सुकृते’ तार लव पाय ॥131॥
 
अनुवाद
 
  “कई प्रार्थनाओं के बाद भी देवता उस भोजन के बचे हुए छोटे से अंश को भी नहीं पा सकते हैं। उस बचे हुए प्रसाद के गर्व की तो कल्पना ही करो! जिस व्यक्ति ने अनेकों जन्मों तक पुण्य किए हैं और इस प्रकार से भक्त बना है, केवल वही उस भोजन के बचे हुए को प्राप्त कर सकता है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.