श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान  »  श्लोक 130
 
 
श्लोक  3.16.130 
অধরের এই রীতি, আর শুন কুনীতি,
সে অধর-সনে যার মেলা
সেই ভক্ষ্য-ভোজ্য-পান, হয অমৃত-সমান,
নাম তার হয ‘কৃষ্ণ-ফেলা’
 
 
अधरेर एइ रीति, आर शुन कुनीति
से अधर - सने यार मेला ।
सेइ भक्ष्य - भोज्य - पान, हय अमृत - समान
नाम तार हय ‘कृष्ण - फेला’ ॥130॥
 
अनुवाद
 
  "इन होठों का यही दस्तूर है। ज़रा गौर करो तो इनकी दूसरी नाइंसाफी देखो। इन होठों को जो भी चीज़ छू जाती है - खाना-पीना या पान ही क्यों न हो - अमृत समान हो जाती है। तब वह चीज़ कृष्ण-फेला, यानी कृष्ण का बचा हुआ प्रसाद कहलाती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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