|
|
|
श्लोक 3.16.13  |
শূদ্র-বৈষ্ণবের ঘরে যায ভেট লঞা
এই-মত তাঙ্র উচ্ছিষ্ট খায লুকাঞা |
|
 |
|
शूद्र - वैष्णवेर घरे याय भेट लञा ।
एइ - मत ताँर उच्छिष्ट खाय लुकाञा ॥13॥ |
|
अनुवाद |
|
वह शूद्र परिवारों में पैदा हुए वैष्णवों के घरों में भी भेंट लेकर जाते थे। फिर वे छिप जाते और जब वे जूठन फेंकते तो उसे खाते। |
|
|
|
|