श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान  »  श्लोक 129
 
 
श्लोक  3.16.129 
শুষ্ক বাঙ্শের লাঠিখান, এত করে অপমান,
এই দশা করিল, গোসাঞি
না সহি’ কি করিতে পারি, তাহে রহি মৌন ধরি’,
চোরার মাকে ডাকি’ কান্দিতে নাই
 
 
शुष्क बाँशेर लाठिखान, एत करे अपमान ,
एइ दशा करिल, गोसाञि ।
ना सहि’ कि करिते पारि, ताहे रहि मौन ध रि’,
चोरार माके डाकि’ कान्दिते नाइ ॥129॥
 
अनुवाद
 
  "यह बांसुरी मात्र बांस की एक सूखी लकड़ी है, किन्तु यह हमारी स्वामिनी बनकर कई तरीकों से हमारा अपमान करती है जो हमें एक विकट स्थिति में डालती है। हम इसके अतिरिक्त क्या कर सकते हैं सिवाय इसके कि इसे सहन करें? जब चोर को सज़ा हो रही होती है तो चोर की माँ न्याय के लिए ऊँची आवाज़ में नहीं रो सकती। इसलिए हम बस चुप रहती हैं।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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