"यह बांसुरी मात्र बांस की एक सूखी लकड़ी है, किन्तु यह हमारी स्वामिनी बनकर कई तरीकों से हमारा अपमान करती है जो हमें एक विकट स्थिति में डालती है। हम इसके अतिरिक्त क्या कर सकते हैं सिवाय इसके कि इसे सहन करें? जब चोर को सज़ा हो रही होती है तो चोर की माँ न्याय के लिए ऊँची आवाज़ में नहीं रो सकती। इसलिए हम बस चुप रहती हैं।"