আছুক নারীর কায, কহিতে বাসিযে লাজ,
তোমার অধর বড ধৃষ্ট-রায
পুরুষে করে আকর্ষণ, আপনা পিযাইতে মন,
অন্য-রস সব পাসরায
आछुक नारीर काय, कहिते वासिये लाज
तोमार अधर बड़ धृष्ट - राय ।
पुरुषे करे आकर्षण, आपना पियाइते मन
अन्य - रस सब पासराय ॥123॥
अनुवाद
"हे कृष्ण, चूंकि तुम नर हो, इसलिए इसमें कोई बड़ी बात नहीं कि तुम्हारे होठों का आकर्षण नारियों के मन को उद्वेलित करता है। परन्तु मुझे यह कहते हुए शर्म आती है कि तुम्हारे निष्ठुर अधर कभी-कभी तुम्हारी बाँसुरी को भी आकर्षित करते हैं, जिसे कि पुरुष माना जाता है। उसे तुम्हारे होठों के अमृत का पान करना अच्छा लगता है, इसीलिए उसे अन्य सभी स्वादों का विस्मरण हो जाता है।"