|
|
|
श्लोक 3.16.120  |
এত কহি’ গৌর-প্রভু ভাবাবিষ্ট হঞা
দুই শ্লোকের অর্থ করে প্রলাপ করিযা |
|
 |
|
एत कहि’ गौर - प्रभु भावाविष्ट हञा ।
दुई श्लोकेर अर्थ करे प्रलाप करिया ॥120॥ |
|
अनुवाद |
|
ऐसा कहकर श्री चैतन्य महाप्रभु प्रेम के आवेश में डूब गए। एक पागल की तरह बातें करते हुए वे उन दोनों श्लोकों का अर्थ समझाने लगे। |
|
|
|
|