ব্রজাতুল-কুলাঙ্গনেতর-রসালি-তৃষ্ণা-হর-
প্রদীব্যদ্-অধরামৃতঃ সুকৃতি-লভ্য-ফেলা-লবঃ
সুধা-জিদ্-অহিবল্লিকা-সুদল-বীটিকা-চর্বিতঃ
স মে মদন-মোহনঃ সখি তনোতি জিহ্বা-স্পৃহাম্
व्रजातुल - कुलाङ्गनेतर - रसालि - तृष्णा - हर - प्रदीव्यदधरामृतः सुकृति - लभ्य - फेला - लवः ।
सुधा - जिदहिवल्लिका - सुदल - वीटिका - चर्वितः स मे मदन - मोहनः सखि तनोति जिह्वा - स्पृहाम् ॥119॥
अनुवाद
"हे प्रिये सखी, सर्वोच्च पुरुषोत्तम भगवान कृष्ण के होठों का नायाब अमृत केवल पुण्यों के अनेक भंडार एकत्रित करने पर ही पाया जा सकता है। वृंदावन की सुंदर गोपियों के लिए तो यह अमृत अन्य सभी स्वादों की अभिलाषाओं को मिटा देता है। मदनमोहन सदैव ऐसा पान खाते हैं जो स्वर्ग के अमृत से भी उत्तम है। वे निश्चित रूप से हमारी जीभ की इच्छाओं को बढ़ा रहे हैं।"