श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान  »  श्लोक 114
 
 
श्लोक  3.16.114 
অনেক ‘সুকৃতে’ ইহা হঞাছে সম্প্রাপ্তি
সবে এই আস্বাদ কর করি’ মহা-ভক্তি”
 
 
अनेक ‘सुकृते’ इहा ह ञाछे सम्प्राप्ति ।
सबे एइ आस्वाद कर क रि’ महा - भक्ति” ॥114॥
 
अनुवाद
 
  “ये प्रसाद अनेकों पुण्यों के फलस्वरूप ही मिला है। अब इसको बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ ग्रहण करो।”
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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