श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान  »  श्लोक 112
 
 
श्लोक  3.16.112 
তাতে এই দ্রব্যে কৃষ্ণাধর-স্পর্শ হৈল
অধরের গুণ সব ইহাতে সঞ্চারিল
 
 
ताते ए इ द्रव्ये कृष्णाधर - स्पर्श हैल ।
अधरेर गुण सब इहाते सञ्चारिल ॥112॥
 
अनुवाद
 
  इसलिए, हमें यह समझना चाहिए कि इन साधारण वस्तुओं में कृष्ण के मुखरबिंद के अमृत का स्पर्श हुआ है और उनकी वजह से इनमें वो सभी आध्यात्मिक गुण हैं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.