|
|
|
श्लोक 3.16.111  |
আস্বাদ দূরে রহু, যার গন্ধে মাতে মন
আপনা বিনা অন্য মাধুর্য করায বিস্মরণ |
|
 |
|
आस्वाद दूरे रहु, यार गन्धे माते मन ।
आपना विना अन्य माधुर्य कराय विस्मरण ॥111॥ |
|
अनुवाद |
|
स्वाद के अलावा उसकी खुशबू भी मन को भाती है, और मिठास के दूसरे रूप भी उसके आगे फीके पड़ जाते हैं। |
|
|
|
|