श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  3.16.11 
তাঙ্র ঠাঞি শেষ-পাত্র লযেন মাগিযা
কাহাঙ্ না পায, তবে রহে লুকাঞা
ताँर ठाञि शेष - पात्र लयेन मागिया ।
काहाँ ना पाय, तबे रहे लुकाञा ॥11॥
 
अनुवाद
वे ऐसे वैष्णवों से भोजन के बचे हुए माँगते थे और यदि उन्हें कुछ नहीं मिलता था, तो वे छिप जाते थे।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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