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श्लोक 3.16.11  |
তাঙ্র ঠাঞি শেষ-পাত্র লযেন মাগিযা
কাহাঙ্ না পায, তবে রহে লুকাঞা |
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ताँर ठाञि शेष - पात्र लयेन मागिया ।
काहाँ ना पाय, तबे रहे लुकाञा ॥11॥ |
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अनुवाद |
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वे ऐसे वैष्णवों से भोजन के बचे हुए माँगते थे और यदि उन्हें कुछ नहीं मिलता था, तो वे छिप जाते थे। |
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