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श्लोक 3.16.107  |
প্রসাদের সৌরভ্য-মাধুর্য করি’ আস্বাদন
অলৌকিক আস্বাদে সবার বিস্মিত হৈল মন |
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प्रसादेर सौरभ्य - माधुर्य करि’ आस्वादन ।
अलौकिक आस्वादे सबार विस्मित हैल मन ॥107॥ |
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अनुवाद |
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जब प्रसाद की अद्भुत मिठास और खुशबू को उन सबों ने चखा तो हर किसी का मन विस्मय से भर गया। |
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