श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान  »  श्लोक 103
 
 
श्लोक  3.16.103 
বাহ্য-কৃত্য করেন, প্রেমে গরগর মন
কষ্টে সম্বরণ করেন, আবেশ সঘন
 
 
बाह्य - कृत्य करेन, प्रेमे गरगर मन ।
कष्टे सम्वरण करेन, आवेश सघन ॥103॥
 
अनुवाद
 
  श्री चैतन्य महाप्रभु अपने बाहरी कामों को तो पूरा करते थे, लेकिन उनका मन प्रेम से भरा होता था। वे बड़ी कोशिश से भी अपने मन को रोक पाते थे, लेकिन वह हमेशा अत्यधिक भाव से अभिभूत हो उठता था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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