বাহ্য-কৃত্য করেন, প্রেমে গরগর মন
কষ্টে সম্বরণ করেন, আবেশ সঘন
बाह्य - कृत्य करेन, प्रेमे गरगर मन ।
कष्टे सम्वरण करेन, आवेश सघन ॥103॥
अनुवाद
श्री चैतन्य महाप्रभु अपने बाहरी कामों को तो पूरा करते थे, लेकिन उनका मन प्रेम से भरा होता था। वे बड़ी कोशिश से भी अपने मन को रोक पाते थे, लेकिन वह हमेशा अत्यधिक भाव से अभिभूत हो उठता था।