वन्दे श्री - कृष्ण - चैतन्यं कृष्ण - भावामृतं हि यः ।
आस्वाद्यास्वादयन्भक्ता न्प्रेम - दीक्षामशिक्षयत् ॥1॥
अनुवाद
मैं उन श्री चैतन्य महाप्रभु को प्रणाम करता हूँ, जिन्होंने स्वयं श्रीकृष्ण प्रेम के अमृत का आनंद लिया और फिर अपने भक्तों को सिखाया कि उसका आनंद कैसे लिया जाए। इस प्रकार उन्होंने अपने भक्तों को श्रीकृष्ण प्रेम के दिव्य ज्ञान से अवगत कराया।