श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 15: श्री चैतन्य महाप्रभु का दिव्य उन्माद  »  श्लोक 99
 
 
श्लोक  3.15.99 
শ্রী-রূপ-রঘুনাথ-পদে যার আশ
চৈতন্য-চরিতামৃত কহে কৃষ্ণদাস
 
 
श्री - रूप - रघुनाथ - पदे यार आश ।
चैतन्य चरितामृत कहे कृष्णदास ॥99॥
 
अनुवाद
 
  श्री रूप और श्री रघुनाथ के चरणकमलों की वन्दना करते हुए तथा उनकी कृपा की सदैव कामना करते हुए उनके चरणचिह्नों पर चलते हुए मैं कृष्णदास श्री चैतन्य-चरितामृत का वर्णन कर रहा हूँ।
 
 
इस प्रकार श्री चैतन्य-चरितामृत, अन्त्य लीला, के अंतर्गत पंद्रहवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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