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श्लोक 3.15.98  |
অনন্ত চৈতন্য-লীলা না যায লিখন
দিঙ্-মাত্র দেখাঞা তাহা করিযে সূচন |
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अनन्त चैतन्य - लीला ना याय लिखन।
दिंकू - मात्र देखाजा ताहा करिये सूचन ॥98॥ |
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अनुवाद |
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श्री चैतन्य महाप्रभु की लीलाएँ अनंत हैं. उन्हें ठीक से लिखना संभव नहीं है. मैं परिचय के उद्देश्य से उनका संकेत मात्र कर सकता हूँ. |
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