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श्लोक 3.15.95  |
এই ত’ কহিলুঙ্ প্রভুর উদ্যান-বিহার
বৃন্দাবন-ভ্রমে যাহাঙ্ প্রবেশ তাঙ্হার |
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एइ त’ कहिलुँ प्रभुर उद्यान - विहार ।
वृन्दावन - भ्रमे याहाँ प्रवेश ताँहार ॥95॥ |
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अनुवाद |
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इस तरह मैंने श्री चैतन्य महाप्रभु की उस मनभावन पुष्प वाटिका में बिताई लीला का वर्णन किया, जहाँ वो गलती से वृंदावन समझकर प्रवेश कर गये थे। |
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