श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 15: श्री चैतन्य महाप्रभु का दिव्य उन्माद  »  श्लोक 88
 
 
श्लोक  3.15.88 
সেই পদ পুনঃ পুনঃ করায গাযন
পুনঃ পুনঃ আস্বাদযে, করেন নর্তন
 
 
सेइ पद पुनः पुनः कराय गायन ।
पुनः पुनः आस्वादये, करेन नर्तन ॥88॥
 
अनुवाद
 
  श्री चैतन्य महाप्रभु ने स्वरूप दामोदर से वही पद बार-बार गाने के लिए कहा। वे पद जितनी बार गाते, महाप्रभु को नया आनंद प्राप्त होता और वे बार-बार नाचने लगते।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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