সেই পদ পুনঃ পুনঃ করায গাযন
পুনঃ পুনঃ আস্বাদযে, করেন নর্তন
सेइ पद पुनः पुनः कराय गायन ।
पुनः पुनः आस्वादये, करेन नर्तन ॥88॥
अनुवाद
श्री चैतन्य महाप्रभु ने स्वरूप दामोदर से वही पद बार-बार गाने के लिए कहा। वे पद जितनी बार गाते, महाप्रभु को नया आनंद प्राप्त होता और वे बार-बार नाचने लगते।