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श्लोक 3.15.86  |
‘অষ্ট-সাত্ত্বিক’ ভাব অঙ্গে প্রকট হ-ইল
হর্ষাদি ‘ব্যভিচারী’ সব উথলিল |
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‘अष्ट - सात्त्विक’ भाव अङ्गे प्रकट ह - इल ।
हर्षादि व्यभिचारी’ सब उथलिल ॥86॥ |
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अनुवाद |
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उस समय श्री चैतन्य महाप्रभु के शरीर में आठों प्रकार के सात्त्विक भाव प्रकट हो गये। साथ ही, शोक और हर्ष से लेकर तैतीसों व्यभिचारी भाव भी प्रकट हो गये। |
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