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श्लोक 3.15.8  |
এক-বারে স্ফুরে প্রভুর কৃষ্ণের পঞ্চ-গুণ
পঞ্চ-গুণে করে পঞ্চেন্দ্রিয আকর্ষণ |
एक - बारे स्फुरे प्रभुर कृष्णेर पञ्च - गुण ।
पञ्च - गुणे करे पञ्चेन्द्रिय आकर्षण ॥8॥ |
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अनुवाद |
जब श्री चैतन्य महाप्रभु को भगवान जगन्नाथ में साक्षात् कृष्ण के होने का एहसास हुआ, तब महाप्रभु की पाँचों इन्द्रियाँ भगवान कृष्ण के पाँचों गुणों के आकर्षण में तुरंत विलीन हो गईं। |
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