কৃষ্ণ-কর-পদ-তল, কোটি-চন্দ্র-সুশীতল,
জিনি’ কর্পূর-বেণা-মূল-চন্দন
এক-বার যার স্পর্শে, স্মর-জ্বালা-বিষ নাশে,
যার স্পর্শে লুব্ধ নারী-মন
कृष्ण - कर - पद - तल, कोटि - चन्द्र - सुशीतल
जिनि’ कर्पूर - वेणा - मूल - चन्दन ।
एक - बार यार स्पर्शे, स्मर - ज्वाला - विष नाशे
यार स्पर्शे लुब्ध नारी - मन ॥76॥
अनुवाद
"कपूर, खसखस और चंदन की शीतलता के संयोग से भी ज़्यादा ठंडक कृष्ण की हथेलियों और उनके चरणों के तलवों से मिलती है। उनकी शीतलता लाखों-करोड़ों चंद्रमाओं से भी बढ़कर और मन को लुभाने वाली है। अगर कोई स्त्री इनके एक बार भी संपर्क में आ जाए, तो तुरंत उसका मन मोहित हो जाता है और कृष्ण के लिए उसकी काम-वासना की विषमयी ज्वाला नष्ट हो जाती है।"