श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 15: श्री चैतन्य महाप्रभु का दिव्य उन्माद  »  श्लोक 73
 
 
श्लोक  3.15.73 
গণ্ড-স্থল ঝলমল, নাচে মকর-কুণ্ডল,
সেই নৃত্যে হরে নারী-চয
সস্মিত কটাক্ষ-বাণে, তা-সবার হৃদযে হানে,
নারী-বধে নাহি কিছু ভয
 
 
गण्ड - स्थल झलमल, नाचे मकर - कुण्डल
सेइ नृत्ये हरे नारी - चय ।
सस्मित कटाक्ष - बाणे, ता - सबार हृदये हाने
नारी - वधे नाहि किछु भय ॥73॥
 
अनुवाद
 
  कृष्ण के गालों पर मकर के आकार के कुण्डल नृत्य करते हैं और वे बहुत चमकते हैं। इन नृत्य करने वाले कुण्डलों में स्त्रियों का मन आकर्षित होता है। इसके अतिरिक्त, कृष्ण अपनी मधुर मुस्कान की तीरों से स्त्रियों के दिलों को घायल करते हैं। स्त्रियों को इस तरह मारने से उन्हें कोई डर नहीं है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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