श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 15: श्री चैतन्य महाप्रभु का दिव्य उन्माद  »  श्लोक 72
 
 
श्लोक  3.15.72 
বান্ধব কৃষ্ণ করে ব্যাধের আচার
নাহি মানে ধর্মাধর্ম, হরে নারী-মৃগী-মর্ম,
করে নানা উপায তাহার
 
 
बान्धव कृष्ण करे व्याधेर आचार
नाहि माने धर्माधर्म, हरे नारी - मृगी - मर्म, ।
करे नाना उपाय ताहार ॥72॥
 
अनुवाद
 
  हे मेरी सहेली, कृष्ण एक शिकारी की तरह व्यवहार करते हैं। यह शिकारी पुण्य या पाप की चिंता नहीं करता। वह मादा हरिण जैसी गोपियों के हृदय के कोने-कोने पर विजय प्राप्त करने हेतु तरह-तरह के उपाय करता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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