कृष्ण जिनि’ पद्म - चान्द, पातियाछे मुख फान्द
ताते अधर - मधु - स्मित चार ।
व्रज - नारी आ सि’ आसि’, फान्दे पड़ि’ हय दासी
छाड़ि’ लाज - पति - घर - द्वार ॥71॥
अनुवाद
श्री चैतन्य महाप्रभु ने कहा, "चन्द्रमा और कमल पर विजय पाने के बाद, कृष्ण ने मृग जैसी गोपियों को पकड़ना चाहा। इसलिए उन्होंने अपने सुंदर चेहरे को जाल की तरह फैला दिया और गोपियों को फंसाने के लिए उसमें अपनी मधुर मुस्कान का चारा रख दिया। गोपियाँ उस जाल की शिकार बन गईं और अपने घर, परिवार, पति और प्रतिष्ठा का त्याग करके कृष्ण की सेविकाएँ बन गईं।"