श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 15: श्री चैतन्य महाप्रभु का दिव्य उन्माद  »  श्लोक 70
 
 
श्लोक  3.15.70 
বীক্ষ্যালকাবৃত-মুখṁ তব কুণ্ডল-শ্রী-
গণ্ড-স্থলাধর-সুধṁ হসিতাবলোকম্
দত্তাভযṁ চ ভুজ-দণ্ড-যুগṁ বিলোক্য
বক্ষঃ শ্রিযৈক-রমণṁ চ ভবাম দাস্যঃ
 
 
वीक्ष्यालकावृत - मुखं तव कुण्डल - श्री - गण्ड - स्थलाधर - सुधं हसितावलोकम् ।
दत्ताभयं च भुज - दण्ड - युगं विलोक्य वक्षः श्रियैक - रमणं च भवाम दास्यः ॥70॥
 
अनुवाद
 
  "हे कृष्ण, केशों से सुशोभित आपके सुंदर मुख को, आपके गालों पर लटकते कुंडल की शोभा को, आपके होंठों के अमृत-समान सौंदर्य को, आपकी हंसीली चितवन को, अभयदान करने वाली आपकी भुजाओं को तथा दांपत्य प्रेम को जागृत करने वाले आपके चौड़े वक्ष को देखकर हमने आपकी दासी बनना स्वीकार कर लिया है।"
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.