श्री चैतन्य महाप्रभु ने रुँधे गले से फिर से कहा, "हाय, हाय, रामराय, तुम चरणामृत गाते रहो।" तब रामानंद राय ने एक श्लोक का गान करना शुरू किया। इस श्लोक को सुनकर कभी प्रभु अत्यंत उल्लसित हो जाते, तो कभी विलाप से व्याकुल हो जाते। अंत में प्रभु ने स्वयं उस श्लोक का अर्थ समझाया।