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श्लोक 68
श्लोक
3.15.68
লীলামৃত-বরিষণে, সিঞ্চে চৌদ্দ ভুবনে,
হেন মেঘ যবে দেখা দিল
দুর্দৈব-ঝঞ্ঝা-পবনে, মেঘে নিল অন্য-স্থানে,
মরে চাতক, পিতে না পাইল
लीलामृत - वरिषणे, सिञ्चे चौद्द भुवने,
हेन मेघ यबे देखा दिल ।
दुर्दैव - झञ्झा - पवने, मेघे निल अन्य - स्थाने ,
मरे चातक, पिते ना पाइल ॥68॥
अनुवाद
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"कृष्ण की लीलाओं के बादल ने अपनी अमृतवर्षा से चौदहों लोकों को तर कर दिया है। परंतु जब वह बादल दिखाई दिया, दुर्भाग्यवश एक प्रचंड तूफान आया और उसे मुझसे दूर उड़ा ले गया। उस बादल को न देख पाने के कारण मेरे चकोर रूपी नेत्र प्यास से लगभग मर चुके हैं।"
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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