श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 15: श्री चैतन्य महाप्रभु का दिव्य उन्माद  »  श्लोक 66
 
 
श्लोक  3.15.66 
সৌদামিনী পীতাম্বর, স্থির নহে নিরন্তর,
মুক্তা-হার বক-পাঙ্তি ভাল
ইন্দ্র-ধনু শিখি-পাখা, উপরে দিযাছে দেখা,
আর ধনু বৈজযন্তী-মাল
 
 
सौदामिनी पीताम्बर, स्थिर नहे निरन्तर
मुक्ता - हार बक - पाँति भाल ।
इन्द्र - धनु शिखि - पाखा, उपरे दियाछे देखा
आर धनु वैजयन्ती - माल ॥66॥
 
अनुवाद
 
  "कृष्ण का पीला वस्त्र आकाश में चंचल बिजली की तरह चमक रहा है। उनके गले का मोतियों का हार बुदबुदाते बादल के नीचे उड़ रहे सारसों की पंक्ति जैसा लग रहा है। उनके सिर पर मोर का पंख और उनकी वैजयन्ती माला (पाँच रंगों के फूलों की माला) इंद्रधनुषों के समान सुशोभित हैं।"
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.