কহ, সখি, কি করি উপায?
কৃষ্ণাদ্ভুত বলাহক, মোর নেত্র-চাতক,
না দেখি’ পিযাসে মরি’ যায
कह, सखि, कि करि उपाय ?
कृष्णाद्भुत बलाहक, मोर नेत्र - चातक, ।
ना देखि’ पियासे म रि’ याय ॥65॥
अनुवाद
"मेरी प्रिय सहेली, मुझे बताओ कि मैं क्या करूँ? कृष्ण एक अद्भुत बादल की तरह आकर्षक हैं और मेरी आँखें चातक पक्षियों के समान हैं, जो प्यास के मारे मर रहे हैं, क्योंकि वे ऐसा बादल नहीं देख पा रही हैं।"