श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 15: श्री चैतन्य महाप्रभु का दिव्य उन्माद  »  श्लोक 64
 
 
श्लोक  3.15.64 
নব-ঘন-স্নিগ্ধ-বর্ণ, দলিতাঞ্জন-চিক্কণ,
ইন্দীবর-নিন্দি সুকোমল
জিনি’ উপমান-গণ, হরে সবার নেত্র-মন,
কৃষ্ণ-কান্তি পরম প্রবল
 
 
नव - घन - स्निग्ध - वर्ण, दलिताञ्जन - चिक्कण
इन्दीवर - निन्दि सुकोमल ।
जिनि’ उपमान - गण, हरे सबार नेत्र - मन
कृष्ण - कान्ति परम प्रबल ॥64॥
 
अनुवाद
 
  चैतन्य महाप्रभु ने आगे कहा, "श्रीकृष्ण का रंग चमकीले अंजन जैसा है। ये रँग नये बादल से ज्यादा खूबसूरत और नीले कमल फूल से भी ज्यादा कोमल है। ये रँग दिखने में इतना अच्छा है कि हर किसी के मन और आँखों को अपनी तरफ खींच लेता है। ये रँग इतना गहरा और तेज है कि इसकी तुलना किसी भी दूसरी चीज से नहीं की जा सकती।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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