श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 15: श्री चैतन्य महाप्रभु का दिव्य उन्माद  »  श्लोक 56
 
 
श्लोक  3.15.56 
কোটি-মন্মথ-মোহন মুরলী-বদন
অপার সৌন্দর্যে হরে জগন্-নেত্র-মন
 
 
कोटि - मन्मथ - मोहन मुरली - वदन ।
अपार सौन्दर्ये हरे जगन्नेत्र - मन ॥56॥
 
अनुवाद
 
  अपने होठों पर बाँसुरी रखकर खड़े कृष्ण, जिन्होंने करोड़ों कामदेवों को मोहित किया था, अपनी असीम सुंदरता से पूरी दुनिया की आँखों और मन को अपनी ओर खींच रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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