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श्लोक 46
श्लोक
3.15.46
রাধা-প্রিয-সখী আমরা, নহি বহিরঙ্গ
দূর হৈতে জানি তার যৈছে অঙ্গ-গন্ধ
राधा - प्रिय - सखी आमरा, नहि बहिरङ्ग ।
दूर हैते जानि तार यैछे अङ्ग - गन्ध ॥46॥
अनुवाद
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"हम कोई बाहरी नारी नहीं हैं। श्रीमती राधारानी की प्यारी सहेलियाँ होने के कारण, हम दूर से ही कृष्ण की शारीरिक सुगंध को जान सकती हैं।"
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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