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श्लोक 42
श्लोक
3.15.42
উত্তর না পাঞা পুনঃ ভাবেন অন্তরে
‘এহ — কৃষ্ণ-দাসী, ভযে না কহে আমারে’
उत्तर ना पाञा पुनः भावेन अन्तरे ।
‘एह - कृष्ण - दासी, भये ना कहे आमारे ॥42॥
अनुवाद
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जब फिर भी उन्हें कोई उत्तर नहीं मिला, तो गोपियों ने सोचा, “ये सारी लताएँ कृष्ण की दासी हैं और डर के मारे ये हमें नहीं बताएंगी।”
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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