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श्लोक 34
श्लोक
3.15.34
মালত্য্ অদর্শি বঃ কচ্চিন্
মল্লিকে জাতি যূথিকে
প্রীতিṁ বো জনযন্ যাতঃ
কর-স্পর্শেন মাধবঃ
मालत्यदर्शि वः कच्चिन्मल्लिके जाति यूथिके ।
प्रीतिं वो जनयन् यातः कर - स्पर्शेन माधवः ॥34॥
अनुवाद
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“हे मालती, मल्लिका, जाती और यूथिका फूलों के पौधे, क्या तुमने कृष्ण को तुम्हें आनंद देने के लिए अपने हाथों से तुम्हें छूते हुए देखा है?”
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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