श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 15: श्री चैतन्य महाप्रभु का दिव्य उन्माद  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  3.15.33 
কচ্চিত্ তুলসি কল্যাণি
গোবিন্দ-চরণ-প্রিযে
সহ ত্বালি-কুলৈর্ বিভ্রদ্
দৃষ্টস্ তে ’তি-প্রিযো ’চ্যুতঃ
 
 
कच्चित्तुलसि कल्याणि गोविन्द - चरण - प्रिये ।
सह त्वालि - कुलैर्बिभ्रहृष्टस्तेऽति - प्रियोऽच्युतः ॥33॥
 
अनुवाद
 
  "हे सर्वमंगलकारी तुलसी के पौधे, तुम भगवान गोविंद के चरणों के अति प्रिय हो, और वे तुम्हें खूब चाहते हैं। क्या तुमने कृष्ण को यहाँ तुम्हारे पत्तों की माला पहने और भौंरों के झुंड से घिरे हुए चलते देखा है?"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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