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अध्याय 15: श्री चैतन्य महाप्रभु का दिव्य उन्माद
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श्लोक 29
श्लोक
3.15.29
বৃন্দাবন-ভ্রমে তাহাঙ্ পশিলা ধাঞা
প্রেমাবেশে বুলে তাহাঙ্ কৃষ্ণ অন্বেষিযা
वृन्दावन - भ्रमे ताहाँ पशिला धाञा ।
प्रेमावेशे बुले ताहाँ कृष्ण अन्वेषिया ॥29॥
अनुवाद
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श्री चैतन्य महाप्रभु ने उस पुष्पवाटिका को वृन्दावन समझकर तुरंत उसमें प्रवेश किया। कृष्ण-प्रेम में डूबकर वे पूरे बगीचे में घूमते रहे और कृष्ण को ढूंढते रहे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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