कर्णामृत, विद्यापति, श्री - गीत - गोविन्द ।
इहार श्लोक - गीते प्रभुर कराय आनन्द ॥27॥
अनुवाद
भगवान को विशेष रूप से बिल्वमंगल ठाकुर द्वारा रचित कृष्णकर्णामृत, विद्यापति की कविता और जयदेव गोस्वामी द्वारा रचित श्री गीतगोविंद को सुनना पसंद था। जब श्री चैतन्य महाप्रभु के साथी इन पुस्तकों से श्लोक सुनाते और गीत गाते, तब महाप्रभु को अत्यंत आनंद मिलता था।