श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 15: श्री चैतन्य महाप्रभु का दिव्य उन्माद  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  3.15.24 
এত কহি’ গৌরহরি, দুই-জনার কণ্ঠ ধরি’,
কহে, — ‘শুন, স্বরূপ-রামরায
কাহাঙ্ করোঙ্, কাহাঙ্ যাঙ, কাহাঙ্ গেলে কৃষ্ণ পাঙ,
দুঙ্হে মোরে কহ সে উপায’
 
 
एत कहि’ गौरहरि, दुइ - जनार कण्ठ ध रि’,
कहे, - ‘शुन, स्वरूप - रामराय ।
काहाँ करों, काहाँ याङ काहाँ गेले कृष्ण पाङ
दुँहे मोरे कह से उपा य’ ॥24॥
 
अनुवाद
 
  इस तरह बोलने के बाद श्री चैतन्य महाप्रभु ने रामानंद राय और स्वरूप दामोदर की गर्दन पकड़ ली। फिर प्रभु ने कहा, ‘‘मेरे प्यारे दोस्तों, कृपया मेरी बात सुनो। मैं क्या करूं? कहां जाऊं? कृष्ण को पाने के लिए मैं कहां जा सकता हूं? कृपा करके, तुम दोनों मुझे बताओ कि मैं उन्हें कैसे पा सकता हूं।’’
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.