एत कहि’ गौरहरि, दुइ - जनार कण्ठ ध रि’,
कहे, - ‘शुन, स्वरूप - रामराय ।
काहाँ करों, काहाँ याङ काहाँ गेले कृष्ण पाङ
दुँहे मोरे कह से उपा य’ ॥24॥
अनुवाद
इस तरह बोलने के बाद श्री चैतन्य महाप्रभु ने रामानंद राय और स्वरूप दामोदर की गर्दन पकड़ ली। फिर प्रभु ने कहा, ‘‘मेरे प्यारे दोस्तों, कृपया मेरी बात सुनो। मैं क्या करूं? कहां जाऊं? कृष्ण को पाने के लिए मैं कहां जा सकता हूं? कृपा करके, तुम दोनों मुझे बताओ कि मैं उन्हें कैसे पा सकता हूं।’’