श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 14: श्री चैतन्य महाप्रभु का कृष्ण-विरह भाव  »  श्लोक 54
 
 
श्लोक  3.14.54 
এই দশ-দশায প্রভু ব্যাকুল রাত্রি-দিনে
কভু কোন দশা উঠে, স্থির নহে মনে
एइ दश - दशाय प्रभु व्याकुल रात्रि - दिने ।
कभु कोन दशा उठे, स्थिर नहे मने ॥54॥
 
अनुवाद
श्री चैतन्य महाप्रभु इन दस दशाओं से दिन-रात व्यग्र रहते थे। जब भी ऐसे लक्षण उभरते, उनका मन अस्थिर हो उठता।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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