প্রভুর বিরহোন্মাদ-ভাব গম্ভীর
বুঝিতে না পারে কেহ, যদ্যপি হয ‘ধীর’
प्रभुर विरहोन्माद - भाव गम्भीर ।
बुझिते ना पारे केह, यद्यपि ह य’ धीर’ ॥5॥
अनुवाद
श्री चैतन्य महाप्रभु का कृष्ण विरह में डूबकर दिव्य उन्माद में चले जाना बहुत गहरी और रहस्यमयी भावना है। कोई कितना भी प्रबुद्ध और विद्वान क्यों न हो, वह इसे समझ नहीं सकता।