श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 14: श्री चैतन्य महाप्रभु का कृष्ण-विरह भाव  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  3.14.32 
স্বপ্নের দর্শনাবেশে তদ্-রূপ হৈল মন
যাহাঙ্ তাহাঙ্ দেখে সর্বত্র মুরলী-বদন
स्वप्नेर दर्शनावे शे तद्रूप हैल मन ।
याहाँ ताहाँ देखे सर्वत्र मुरली - वदन ॥32॥
 
अनुवाद
उस दृश्य में पूर्णरूप से समाहित होकर श्री चैतन्य महाप्रभु ने गोपियों का भाव अपना लिया था, इसलिए जहाँ भी वे देखते थे, उन्हें कृष्ण अपने होठों से बांसुरी को लगाए खड़े दिखाई देते थे।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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