স্বপ্নের দর্শনাবেশে তদ্-রূপ হৈল মন
যাহাঙ্ তাহাঙ্ দেখে সর্বত্র মুরলী-বদন
स्वप्नेर दर्शनावे शे तद्रूप हैल मन ।
याहाँ ताहाँ देखे सर्वत्र मुरली - वदन ॥32॥
अनुवाद
उस दृश्य में पूर्णरूप से समाहित होकर श्री चैतन्य महाप्रभु ने गोपियों का भाव अपना लिया था, इसलिए जहाँ भी वे देखते थे, उन्हें कृष्ण अपने होठों से बांसुरी को लगाए खड़े दिखाई देते थे।