श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 3: अन्त्य लीला » अध्याय 14: श्री चैतन्य महाप्रभु का कृष्ण-विरह भाव » श्लोक 10 |
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| | श्लोक 3.14.10  | স্বরূপ — ‘সূত্র-কর্তা’, রঘুনাথ — ‘বৃত্তিকার’
তার বাহুল্য বর্ণি — পাঙ্জি-টীকা-ব্যবহার | स्वरूप - सूत्र - कर्ता’, रघुनाथ - ‘वृत्तिकार’ ।
तार बाहुल्य वर्णि - पाँजि - टीका - व्यवहार ॥10॥ | | अनुवाद | स्वरूप दामोदर ने संक्षेप में लिखा, जबकि रघुनाथ दास गोस्वामी ने विस्तृत विवरण लिखे। अब मैं श्री चैतन्य महाप्रभु के कार्यकलापों का वर्णन अधिक विस्तार से करूँगा, मानो रुई को खींचा जा रहा हो। | | |
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