श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 13: जगदानन्द पण्डित तथा रघुनाथ भट्ट गोस्वामी के साथ लीलाएँ  »  श्लोक 61
 
 
श्लोक  3.13.61 
রক্ত-বস্ত্র ‘বৈষ্ণবের’ পরিতে না যুযায
কোন প্রবাসীরে দিমু, কি কায উহায?
रक्त - वस्त्र ‘वैष्णवेर’ परिते ना युयाय ।
कोन प्रवासीरे दिमु, कि काय उहाय ? ॥61॥
 
अनुवाद
"यह केसरिया वस्त्र वैष्णवों के पहनने के लिए नहीं है, इसलिए यह मेरे किसी काम का नहीं है। मैं इसे किसी अनजान व्यक्ति को दे दूँगा।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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