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श्लोक 3.13.54  |
শুনি’ পণ্ডিতের মনে ক্রোধ উপজিল
ভাতের হাণ্ডি হাতে লঞা মারিতে আইল |
शुनि’ पण्डितेर मने क्रोध उपजिल ।
भातेर हाण्डि हाते लञा मारिते आइल ॥54॥ |
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अनुवाद |
यह सुनकर जगदानंद पंडित तुरन्त क्रोधित हो गए और सनातन गोस्वामी को मारने के उद्देश्य से अपने हाथ में भोजन पकाने की हंडिया उठा ली। |
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