श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 13: जगदानन्द पण्डित तथा रघुनाथ भट्ट गोस्वामी के साथ लीलाएँ  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  3.13.27 
স্বরূপ-গোসাঞিরে পণ্ডিত কৈলা নিবেদন
“পূর্ব হৈতে বৃন্দাবন যাইতে মোর মন
स्वरूप - गोसाञि रे पण्डित कैला निवेदन ।
“पूर्व हैते वृन्दावन याइते मोर मन ॥27॥
 
अनुवाद
तब जगदानन्दजी ने स्वरूप दामोदर गोस्वामी से प्रार्थना कर कहा, "बहुत लंबे समय से मेरी इच्छा है कि मैं वृन्दावन जाऊँ।"
 
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.