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श्लोक 3.13.27  |
স্বরূপ-গোসাঞিরে পণ্ডিত কৈলা নিবেদন
“পূর্ব হৈতে বৃন্দাবন যাইতে মোর মন |
स्वरूप - गोसाञि रे पण्डित कैला निवेदन ।
“पूर्व हैते वृन्दावन याइते मोर मन ॥27॥ |
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अनुवाद |
तब जगदानन्दजी ने स्वरूप दामोदर गोस्वामी से प्रार्थना कर कहा, "बहुत लंबे समय से मेरी इच्छा है कि मैं वृन्दावन जाऊँ।" |
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